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आईपीएल का तमाशा

Jagran Juggernaut
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पिछले एक माह से इंडियन प्रीमियर लीग के मैचों का लुत्फ उठा रहे क्रिकेट प्रेमियों का ध्यान अब भी आईपीएल पर है, लेकिन उसके मुकाबलों से अधिक उस विवाद पर जो विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर और ललित मोदी के बीच छिड़ा हुआ है। भारत में ट्वेंटी-20 मैच भले ही देर से शुरू हुए हों, लेकिन क्रिकेट के इस संस्करण का पहला विश्व कप जीतने के बाद भारत में ट्वेंटी-20 की लोकप्रियता चरम पर है। इन मैचों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जिस आईपीएल को जाता है उसकी साख पर बंट्टा लगता दिखा रहा है, क्योंकि शशि थरूर और ललित मोदी की भिड़ंत से नित नए खुलासे हो रहे हैं। साख और साथ ही अपनी कुर्सी बचाने का संकट शशि थरूर के सामने भी है, क्योंकि विपक्ष तो उन पर अविश्वास जता ही रहा है, सत्तापक्ष भी उनकी सफाई से संतुष्ट नहीं।
तीन वर्ष पहले जब आईपीएल की आठ टीमों की नीलामी हुई थी तो क्रिकेट जगत के साथ-साथ कारपोरेट जगत में भी हलचल हुई थी, लेकिन पिछले दिनों दो नई टीमों की नीलामी ने दुनिया भर को चौंका दिया, क्योंकि इन दोनों टीमों की नीलामी राशि आठ टीमों की कुल नीलामी से कहीं अधिक रही। इन दो नई टीमों में से पुणे की नीलामी सहारा एडवेंचर स्पो‌र्ट्स के पक्ष में गई और दूसरी कोच्चि की रेंदेवू स्पो‌र्ट्स व‌र्ल्ड के पक्ष में। विवाद का पिटारा तब खुला जब आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी ने यह खुलासा किया कि रेंदेवू स्पो‌र्ट्स व‌र्ल्ड की एक भागीदार शशि थरूर की मित्र सुनंदा पुष्कर हैं, जिन्हें 70 करोड़ की हिस्सेदारी मिली है। मोदी के मुताबिक थरूर चाहते थे कि सुनंदा के नाम का खुलासा न हो। इसके जवाब में थरूर ने मोदी पर आरोप लगाया कि वह कोच्चि की टीम अहमदाबाद ले जाना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने रेंदूवू स्पो‌र्ट्स व‌र्ल्ड पर दबाव भी बनाया। थरूर का मोदी पर ताजा आरोप यह है कि वह कोच्चि टीम को अबुधाबी ले जाना चाहते थे। हालांकि थरूर ने सफाई दी है कि सुनंदा को बिना पैसा लगाए 70 करोड़ की भागीदारी मिलने में उनकी कोई भूमिका नहीं, लेकिन इस पर यकीन करना मुश्किल है। शशि थरूर विदेश राज्य मंत्री बनने के बाद से ही एक के बाद एक विवादों में घिर रहे हैं। ताजा विवाद उन पर भारी पड़ सकता है।
वैसे तो क्रिकेट में राजनेताओं की दिलचस्पी पहले से ही है, लेकिन जब से आईपीएल का गठन हुआ है तब से उनकी दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। भले ही आईपीएल बीसीसीआई की एक उपसमिति हो, लेकिन ललित मोदी के नेतृत्व में वह कहीं अधिक प्रभावशाली नजर आती है। जिस बीसीसीआई ने आईपीएल को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए उसे ही अब अपनी इस उपसमिति को नियंत्रित करने के उपाय खोजने पड़ रहे हैं। जब आईपीएल के पहले जीटीवी से संबंधित एसेल समूह की ओर से आईसीएल का गठन किया गया था तो बीसीसीआई ने न केवल उसे मान्यता देने से इनकार किया, बल्कि उसे विफल करने के भी प्रयास किए। अपने इस प्रयास में वह सफल भी हुई, क्योंकि अन्य देशों के क्रिकेट बोर्ड उसका विरोध करने की स्थिति में नहीं थे। आज क्रिकेट जगत में बीसीसीआई अपने आप में एक महाशक्ति है, क्योंकि क्रिकेट में जो भी पैसा आ रहा है वह मुख्यत: भारत के कारण ही आ रहा है। आईपीएल की सफलता बीसीसीआई की एक उपलब्धि है। इसका प्रमाण आईपीएल की ब्रांड वैल्यू से मिलता है, जो 4.13 अरब डालर हो गई है। यह गत वर्ष के मुकाबले दोगुनी है।
आईपीएल की सफलता से दुनिया चकित है, क्योंकि उसने तीन वर्ष में ही सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं। यद्यपि क्रिकेट 10-12 देशों में ही खेला जाता है, लेकिन आईपीएल का जलवा दुनिया भर में खेले जाने वाले फुटबाल की कई लीग से भी ज्यादा है। नि:संदेह लोकप्रियता के मामले में फुटबाल क्रिकेट से कहीं आगे है, लेकिन आईपीएल में जैसी धन वर्षा हो रही है वह अभूतपूर्व है। एक ऐसे समय आईपीएल का विवाद से घिरना दुर्भाग्यपूर्ण है जब वह दुनिया भर को आकर्षित कर रहा है। कोच्चि टीम की नीलामी को लेकर जो विवाद उभरा उसके चलते आयकर विभाग को आईपीएल और उसकी फ्रेंचाइजी टीमों के हिसाब-किताब की छानबीन करनी पड़ रही है। अब यह आशंका भी उभर आई है कि कहीं आईपीएल में गलत तरीके से अर्जित धन का इस्तेमाल तो नहीं हो रहा? ऐसी आशंका उभरनी ही थी, क्योंकि न तो बीसीसीआई की कार्यप्रणाली पारदर्शी है और न आईपीएल की। आईपीएल टीमों की नीलामी प्रभावित करने के जो आरोप मोदी पर लग रहे हैं उन्हें सिद्ध करना मुश्किल है, लेकिन इससे इनकार नहीं कि आईपीएल कुछ ऐसे अरबपतियों के शौक की पूर्ति का साधन बन गया है जिनका क्रिकेट से कोई वास्ता नहीं।
एक समय क्रिकेट भद्रजनों का खेल था, जिसे पांच-छह देशों के खिलाड़ी खेलते थे, लेकिन आईपीएल के जरिये अब यह खेल मनोरंजन और धनार्जन का भी साधन बन गया है। आईपीएल को लेकर जो तमाम संदेह और सवाल उभर आए हैं उससे बीसीसीआई की प्रतिष्ठा दांव पर है। भारत में क्रिकेट के प्रति बढ़ती दीवानगी तो समझ आती है, लेकिन इस खेल के प्रति राजनेताओं की दिलचस्पी जिस तरह से बढ़ती जा रही है वह तनिक अस्वाभाविक है। आज करीब-करीब हर राज्य के राजनेता क्रिकेट से जुड़ना चाहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कुछ केंद्रीय स्तर के राजनेता बीसीसीआई से जुड़ना चाहते हैं। इनमें से ऐसे भी हैं जिनका क्रिकेट से कोई नाता नहीं रहा। थरूर ने क्रिकेट में जो दिलचस्पी दिखाई उसमें कुछ भी हर्ज नहीं। हर्ज तो इस दिलचस्पी का अप्रत्याशित लाभ उनकी मित्र को मिलने पर है।
आईपीएल की लोकप्रियता के साथ उसकी फ्रेंचाइजी टीमों का मूल्यांकन इस तेजी से बढ़ रहा है कि उनमें से कुछ पूंजी बाजार में उतरने की संभावनाएं तलाश रही हैं। इन स्थितियों में यह आवश्यक हो जाता है कि न केवल आईपीएल के वित्तीय कामकाज की पड़ताल हो, बल्कि इसकी भी कि फ्रेंचाइजी टीमों के भागीदारों के पास पैसा कहां से आ रहा है? क्रिकेट में सट्टेबाजी का रोग पुराना है। अब फ्रेंचाइजी टीमों की बेनामी भागीदारी का खतरा पैदा हो गया है। हाल ही में एक ऐसी वेबसाइट चर्चा में आई है जिसके जरिये आईपीएल मैचों के दौरान सट्टा खेला जा रहा है। चर्चा यह भी है कि इस वेबसाइट का संबंध शेन वार्न से है। यदि आईपीएल में किसी भी रूप में गलत तरीके से हासिल किया गया पैसा आ रहा है तो इससे क्रिकेट पर कालिख ही पुतेगी। यदि आईपीएल की साख पर बट्टा लगता है तो इससे कहीं न कहीं भारत की छवि भी प्रभावित होगी। यह आवश्यक है कि आईपीएल और बीसीसीआई की कार्यप्रणाली पारदर्शी हो। इसी तरह क्रिकेट के जरिये जो सट्टेबाजी हो रही है उसे या तो कानूनी मान्यता दी जाए या फिर उस पर कड़ाई से पाबंदी लगाई जाए। आईपीएल को लेकर उभरे सवालों का जवाब सामने आना इसलिए जरूरी है ताकि किसी घपले-घोटाले की आशंका से भी बचा जा सके और भारत के सबसे लोकप्रिय खेल के साथ खिलवाड़ होने के अंदेशे से भी।

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